माता पिता बनने की आशा हर दम्पति में होती हैं। जो ख़ुशी बच्चे की किलकारी से मिलती है उसके आगे दुनिया की हर ख़ुशी कम है। किसी कारणवश यदि वे इस सुख से वंचित रह जाते हैं तो दोनों के लिए ही पीड़ादायक स्तिथि बन जाती है। यदि आप भी इन सब परिस्थितियों से गुज़र रहें हैं तो आप IVF ट्रीटमेंट का उपयोग कर सकते हैं। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से बहुत से दम्पति आसानी से माता-पिता बन रहे हैं और एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
यदि आप शादी के वर्षों बाद भी संतानसुख से वंचित है तो आप एक अच्छे चिकित्सक से विचार-विमर्श करके अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं। यदि आपको चिकित्सक आई.वी.एफ करने की सलाह देते हैं तो उसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं :-
1. पुरुष प्रजनन क्षमता में कमी :- कई बार पुरुषों को भी शुक्राणु संबंधी समस्या हो जाती है, जिस कारण महिला गर्भधारण नहीं कर पाती। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि शुक्राणुओं की कमी, शुक्राणुओं की गति कम होना, शुक्राणुओं के आकार में कमी, सीमेन में खराब गुणवत्ता वाले शुक्राणु इत्यादि। अतः इस समस्या को दूर करने के लिए ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection) प्रक्रिया अपनाई जाती है। ताकि स्वस्थ शुक्राणु महिला के अंडे के साथ निषेचित (Fertilize) होकर भ्रूण का निर्माण करें।
2. महिला प्रजनन क्षमता में कमी :- ऐसा देखने में आता है कि काफी महिलाओं में ओव्यूलेशन की समस्या होती है जिस कारण वह अनियमित पीरियड्स, बहुत दर्दनाक पीरियड्स, पीरियड्स में अत्यंत रक्त बहना, या फिर पीरियड्स ना आना, ऐसी कई परेशानियों का सामना करती हैं। जो उनकी प्रजनन शक्ति पर असर डालता है। फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज या गर्भाशय में समस्या बाँझपन के सामान्य कारणों में से एक माना जाता है। इस समस्या को दूर करने के लिए आई.वी.एफ प्रक्रिया के द्वारा अधिक अंडों के विकास के लिए इंजेक्शन लगाए जाते है।
आई.वी.एफ करवाने से पहले आपको अनुभवी चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। आपको बता दें इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल है। जो कि इस प्रकार है :-
पहला चरण :- यदि चिकित्सक आपको स्वयं के अंडो का उपयोग करने का परामर्श देते हैं तो इस स्थिति में सबसे पहले ओवरी को हार्मोन्स के इंजेक्शंस के द्वारा अंडे बनाने के लिए उत्तेजित (Stimulate) किया जाता है। ये प्रक्रिया 10 से 11 दिन तक होती हैं और प्रतिदिन इस में 10-15 मिनट का ही समय लगता है। इसके अलावा कई टेस्ट भी करवाये जाते है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा अंडे विकसित किये जा सकें। ऐसा इसलिए कराया जाता है क्योंकि कई बार कुछ अंडे फर्टिलाइजेशन के बाद विकसित नहीं हो पाते हैं।
दूसरा चरण :- यह प्रक्रिया पहले चरण के तकरीबन 34 से 36 घंटे बाद शुरू की जाती है जिसके अंतर्गत अंडाशय (Overy) में से अंडों को निकाला जाता है। इसमें पेशेंट बेहोश रहता है और उसका ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड(TVS) किया जाता है। ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड में योनि (Vagina) में एक पतली सुई डाली जाती है और अण्डों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाता है। जिसके बाद पूरी तरह से परिपक्व(mature ) अंडों को और अधिक परिपक्व(mature) करने के लिए इसे पोषक तरल(Media) में रख दिया जाता है। इस दौरान जो भी अंडे पूरी तरह से स्वस्थ दिखाई देते हैं उन्हे स्पर्म के साथ मिला दिया जाता है।
तीसरा चरण :- इस चरण में पुरुषों को अपना स्पर्म देना होता है। जिसके लिए वे मस्टरबेशन या टेस्टिक्युलर एस्पिरेशन का सहारा ले सकते हैं। जिसके बाद भ्रूणविज्ञानी(Embryologist) इस स्पर्म से स्पर्म फ्लूड अलग करने का काम करते हैं।
चौथा चरण :- इस चरण में परिपक्व स्पर्म और परिपक्व अंडे को एक साथ फर्टिलाइज किया जाता है जिसके बाद यह भ्रूण की शक्ल में तब्दील हो जाते हैं।
पांचवा तथा अंतिम चरण :- इस चरण में फर्टिलाइजेशन के 3 से 5 दिन बाद बने भ्रूण को पतली ट्यूब या कैथेटर की सहायता से महिला के गर्भाशय में रखा जाता है। कुछ महिलाओं के लिए यह प्रकिया थोड़ी सख्त होती है, जबकि कुछ के लिए यह प्रक्रिया बहुत आसान होती है।
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